महकती यादों के गुल
बाग से चुनता रहता हूं
इक याद तुम्हारी, ही वजह
जो ख्वाब पिरोता रहता हूं
मखमली सुबह हो या
सुहानी शाम का आलम
हर दिन सुन्हरी धूप में
ठंडी छांव किये बैठा हूं
सोच तुम्हें, सफेद पन्नों पर
लिखता हुं हर रोज कलम
देर हुई, गम नहीं, राह तुम्हारी एकटक
देख बार बार मैं, गीत लिखता रहता हूं
मसि छलक स्याही सा, बेचैन मैं उसाही
गर तुम नहीं फिर, इंतज़ार ही सही
कश्यप द्विवेदी