Tuesday, April 1, 2025

"भामा"

पूछा एक दोस्त ने, एक बार मुझसे,
की दिखती कैसी है?
जो करती है इतनी मोहब्बत तुझसे

क्या खास ऐसा उसमें, जो किसी और में नहीं ?
कोई और ना बना दुनिया में और कहीं ?

लिख लूं, फिर कहता हूं

बने तो सब मुझसे, वह बन न पाई,

सीधी, सरल कभी चपल, 
अपनी में रहती है,
होठों पर जो आ जाए
वह साफ कहती है

अभिमान न था उसमें 
मनोज्ञ, सुरूप, मंजूलता जिसमें

शांत हो जाए मन 
जो पड़ जाए उस पर नजर 
पवन हो जाए मन 
जो नजर टकरा जाए 

छू कर सिंचते देखा मैंने उसे,  बागों की नर्म कलियों को, 
जो घंटों चिड़ियाओं से भी गुफ्तगू कर लेती है 
क्या पता कैसे बंजर दिल में मेरे चैन से रह लेती है 

जिंदा रखती है मुझे, 
मेरी कहानी, कविताओं को 
मुझे समेटे, 
निर्मोह मोहब्बत की क्या बात बतलाऊं 
उसकी खास, उसके बिना कैसे दिखलाऊं 

क्या चंद्रमा शीतल? सितारे हसीन? 
फूलों में खुशबू? क्या खूबसूरत?
कहां रब? नहीं जानता 
जो बतलाया ऊपर पंक्तियों में बस उसे मानता..



कश्यप द्विवेदी