Monday, December 24, 2012

मशाल .................


ये दूर जो दिखाई दी , है कैसी ये चिंगारियां !
जो स्वप्न से जगा  दे , है कैसी ये रुदालियाँ !!

है कौनसा सवाल ये , जो   'लौ ' लिए मै  चल दिया !
हिचक को ललकार आज , मै किस राह चल दिया !!

इन्साफ का सवाल था , दिलों मे जो बवाल था !
इंतज़ार -ऐ -फ़ैसले मे , हर जिस्म आज मशाल था !!

बुझे ना  बुझेगी एक ऎसी ये 'मशाल' है !
मासूम जिंदगी की फ़िक्र का सवाल है !!

उठा आवाज़
करो आगाज़
एक ऐसे अनदेखे द्वन्द का .............

उठा कलम
कर प्रयास
एक ऐसे अनसुने छंद का ..............

जो द्वन्द को विराम दे ,
इस गूंगी राजनीती को इन्साफ की जुबान दे !!!!!!!!!



                                                   कश्यप द्विवेदी
                                                              KASHYAP DWIVEDI 

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