गए, कल फिर वही बात हुई
बिसरी, सहसा फिर साथ हुई
अंजान सा मैं, चुप था मगर
धीरे से ही सही, पर कुछ बात हुई
पूछा उसने, कैसे हो
अब तो चैन से सोते हो?
ठहाके से ही सच
बिन बात ही निकल गया
पहले सपने आते थे
दिन यादों में निकलते
शाम मुलाक़ातों में
अब अपनी में मशगूल
दिन भर अपनों में होता हूँ
रात में गहरा सोता हूं
सोच कर, ठिठकी,
कहती तो क्या मैं पराई थी?
मौन हो एक पल कहा
जो थी तुम, उसकी मिसाल नहीं
एक हसीन कहानी जिसे साथ लिखा
वो कहानी पराई नहीं
सुलगा के कश लेते
देख ती एक टक मुझे
कि कहीं मिल जाए नज़र
तो बात, तो हो
कश के बहाने से ही सही
कुछ और पल हम तुम साथ तो हो
कशमकश में आज भी
मौका ढूंढ लिया था उसने
बेपरवाह एक रोज़
फ़रेब कर दिया था जिसने
इश्क कहूँ, या कहु फ़िक्र
जिसका कभी था हर बात में जिक्र
चुप ही रहा, परवाह आज भी
क्या हुआ क्यों हुआ, वो राज़ आज भी
खामोशी का शोर लीजिए
मन से ढेरों दुआ दिये
निकल चला निशब्द ही
धीरे से ही सही
कल कुछ बात तो हुई
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