समंदर .......................
साहिल की तलाश किये ..... हिचकोले खाता फिर रहा
कितनी ख़ामोशी कितने सैलाब लिए .... झुंड से तन्हा चल रहा
जो ऱाज छुपाए लेटे हैं ... इस घने आकाश तले
जो ख्वाब सजाए बैठे हैं ... इंतज़ार में कब रात ढले
अक्सर मुलाकातें होती तुझसे ... कुछ पल ही रंगीन सही
हम तुम कुछ कह न पाते ... शिक्वा भी तुझसे है नहीं
चट्टानों से टकराता ... घायल मै कहीं खो न जाऊं
वो कहता रहा छोड़ साहिल ... मंजिल से हो जा रूबरू
ना समझ वो क्या जाने ... मंजिल तो मुसाफिर की अमानत है
मै तो समंदर हूँ ... मेरा महबूब तो साहिल है
गहराइयों को समेटे बस तलाश में रहूँ ...
मै तो समंदर हूँ ... बिना महबूब कैसे जियूं
कश्यप द्विवेदी
साहिल की तलाश किये ..... हिचकोले खाता फिर रहा
कितनी ख़ामोशी कितने सैलाब लिए .... झुंड से तन्हा चल रहा
जो ऱाज छुपाए लेटे हैं ... इस घने आकाश तले
जो ख्वाब सजाए बैठे हैं ... इंतज़ार में कब रात ढले
अक्सर मुलाकातें होती तुझसे ... कुछ पल ही रंगीन सही
हम तुम कुछ कह न पाते ... शिक्वा भी तुझसे है नहीं
चट्टानों से टकराता ... घायल मै कहीं खो न जाऊं
क्षितिज जो दुश्मन है मेरा ... गुमराह कर रहा मुझे
आकाश से मिल इतराता कहता ... क्यूँ आस लगाऎ बैठा है
क्यूँ अपनी आत्मा को नमकीन बनाए बहता है
इस नीले सागर में ... आंसू बहाए रहता है
इस नीले सागर में ... आंसू बहाए रहता है
वो कहता रहा छोड़ साहिल ... मंजिल से हो जा रूबरू
ना समझ वो क्या जाने ... मंजिल तो मुसाफिर की अमानत है
मै तो समंदर हूँ ... मेरा महबूब तो साहिल है
गहराइयों को समेटे बस तलाश में रहूँ ...
मै तो समंदर हूँ ... बिना महबूब कैसे जियूं
कश्यप द्विवेदी
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