Tuesday, July 29, 2014

लिफाफा (लघु कथा )


राजू … जल्दी मेरे केबिन आओ। 
राजू घबराते  हुए  भीतर आया। 
ये लिफाफा  अभी तक तुने कुरियर नहीं किया , जानता नहीं ये सरकारी दस्तावेज़ दो दिनों में वकील साहब तक पहुँचाने हैं। अब खड़े खड़े मेरा मुंह  मत ताक और जल्दी इन्हें कुरियर कर और सुन एक चाय भिजवा फ़ौरन। 

राजू असमंजस में था पहले क्या करुँ चाय बनाऊं  या लिफाफा कुरियर लगाऊं। 

तभी अफ़सर साहब के मोबाइल की घंटी बजी , राजू को बहार दुत्कारते हुए साहब ने ऊँचे शब्दों में हर्ष और गर्मजोशी से कॉल उठाया और कहा वकील साहब दस्तावेज़ मैंने भिजवा दिए हैं , एक आद दिन में आपके पास पहुँच जाएंगे। कुछ क्षण जवाब सुन साहब बोले " वाह १५ दिन वो भी डलहौज़ी में, वाह वाह छुटीयोँ का आनंद लीजिये , मैं आपको १५ दिन के बाद कॉल करता हूँ। 

राजू ने दरवाज़े से सट कर सब ध्यान से सुना। उसे अपने असमंजस का जवाब मिल गया था।


                                                                                                               कश्यप द्धिवेदी

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