Tuesday, October 20, 2015

द्वन्द

                                                                           "द्वन्द" 

"आज कल पढाई लिखाई जरूरी नहीं, बस काम करना और काम निकलवाना आना चाहिए "
कहते हुए सेठजी अपनी बड़ी सी गाडी में एयरपोर्ट निकल गए । 

नौकरी का  पहला दिन था, सो कागज़ात व फाइल लिए मै भी दफ्तर की और बढ़ा । 

अपने क्यूबिकल डेस्क पर जाकर कुछ पुरानी फाइलें देखने लगा, तभी कुछ सह कर्मियों से जान पहचान हुई । 

लंच करते समय एक सहकर्मी से पता चला की सेठ जी अपने बेटे को लेने एयरपोर्ट गए थे, जो की अमेरिका से व्यवसाय प्रशासन में स्नातकोत्तर कर लौटा है । 

एक दम से मेरे ध्यान में सेठजी का कहा सुबह वाला कथन सामने आगया । क्षण भर में उस द्वन्द से बहार आया तो पता चला की कल से सेठजी के सुपुत्र ही दफ्तर में मेरे साहब होंगे । 

अगले दिन सुबह समय पर दफ्तर पहुंचा तो पाया की मेरे नए साहब आज जल्दी ही दफ्तर आगए हैं । पारदर्शी दरवाज़े से झांकते हुए पाया की सेठजी भी पास वाली कुर्सी पर साहब के साथ बैठे हैं । 

अंदर आने की इजाज़त मांगते हुए मैं दाखिल हुआ और सेठजी व उनके पुत्र यानी मेरे साहब को सुप्रभात व शुभकामना  देकर सामने खड़ा हुआ । 

सेठजी ने साहब से मुझे मिलवाया और मुझे साहब के बारे में बताया , कुछ बातों के बाद सेठजी को बीच मे टोकते हुए साहब ने मेरे बारे में मुझसे पूछा । 

मेरे पुराने काम के एक साल के अनुभव को सुन साहब ने मेरी शैक्षणिक योग्यता के बारे में पुछा । वित्तव्यापार में स्नातक जान मुझे साहब ने बधाई दी और स्नातकोत्तर करने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा :

"आज कल पढाई लिखाई बहुत जरूरी है; पढ़ा लिखा आदमी अपनी बुद्धिमता से किसी भी काम को कर या करवा सकता है । 

चेहरे पर मुस्कान व मष्तिस्क में द्वन्द लिए साहब व सेठजी से इजाज़त मांग अपनी जगह लौटा और काम में  लग गया ।


                                                                                                                          कश्यप द्विवेदी (मुसाफ़िर )

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