ये रंग भी नकाब है, मलमल नही गुलाल है,
हरपल बदल के चल रही, ये जिंदगी कमाल है,
जो तुम मलो तो, कौन हो ?
जो मैं मलुं तो, मौन हो !
सुनो जरा, वो रंग हरा, छिडक न देना, तुम वहां
जहां वो अजनबी हंसी, वो झांकती सी खिडकियां
याद अब भी है मुझे, वो रंग जो पसंद तुझे
ना कर वो जिद, यकीन कर, न होगी अब वो दूरियां
लगा के रंग, हो मलंग, करे हंसी अठखेलियां
कश्यप द्विवेदी
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