Saturday, December 29, 2012

धूमिल ...


हर तरफ ज़िक्र है  ; क्यूँ  उठ रहा है धुंआ
 ज़रा पूछो  उस रब से ; क्यों मुझ से रूठा हुआ ....

ये वक़्त थमता नहीं
क्यूँ तू भी सुनता नहीं ....

चल रहा कफ़न लिए मुसाफिर इस राह पर
सारे गम दफ़न किये खफा खुदी से आंह भर

कि  कब खुलेगी आँख मेरी; ये मुझे पता नहीं
आसन मौत की ये ख्वाइश ; है कोई खता नहीं ....

धधक धधक के जल रहा हूँ
इस धुएं मे मिल रहा हूँ

राख बनके ''धूमिल''
इस ज़मीं मे शामिल हो रहा हूँ  .........




                                         कश्यप द्विवेदी




Monday, December 24, 2012

मशाल .................


ये दूर जो दिखाई दी , है कैसी ये चिंगारियां !
जो स्वप्न से जगा  दे , है कैसी ये रुदालियाँ !!

है कौनसा सवाल ये , जो   'लौ ' लिए मै  चल दिया !
हिचक को ललकार आज , मै किस राह चल दिया !!

इन्साफ का सवाल था , दिलों मे जो बवाल था !
इंतज़ार -ऐ -फ़ैसले मे , हर जिस्म आज मशाल था !!

बुझे ना  बुझेगी एक ऎसी ये 'मशाल' है !
मासूम जिंदगी की फ़िक्र का सवाल है !!

उठा आवाज़
करो आगाज़
एक ऐसे अनदेखे द्वन्द का .............

उठा कलम
कर प्रयास
एक ऐसे अनसुने छंद का ..............

जो द्वन्द को विराम दे ,
इस गूंगी राजनीती को इन्साफ की जुबान दे !!!!!!!!!



                                                   कश्यप द्विवेदी
                                                              KASHYAP DWIVEDI