हर तरफ ज़िक्र है ; क्यूँ उठ रहा है धुंआ
ज़रा पूछो उस रब से ; क्यों मुझ से रूठा हुआ ....
ये वक़्त थमता नहीं
क्यूँ तू भी सुनता नहीं ....
चल रहा कफ़न लिए मुसाफिर इस राह पर
सारे गम दफ़न किये खफा खुदी से आंह भर
कि कब खुलेगी आँख मेरी; ये मुझे पता नहीं
आसन मौत की ये ख्वाइश ; है कोई खता नहीं ....
धधक धधक के जल रहा हूँ
इस धुएं मे मिल रहा हूँ
राख बनके ''धूमिल''
इस ज़मीं मे शामिल हो रहा हूँ .........
कश्यप द्विवेदी