Thursday, July 11, 2013

समंदर .......................

समंदर .......................


साहिल की तलाश किये ..... हिचकोले खाता फिर  रहा

कितनी ख़ामोशी कितने सैलाब लिए .... झुंड से तन्हा चल रहा

जो ऱाज छुपाए लेटे हैं ... इस घने आकाश तले 

जो ख्वाब सजाए बैठे हैं ... इंतज़ार में कब रात ढले 

अक्सर मुलाकातें  होती तुझसे  ... कुछ पल ही रंगीन सही 

हम तुम कुछ कह न पाते ... शिक्वा भी तुझसे है नहीं

चट्टानों से टकराता ... घायल मै कहीं खो न जाऊं 

क्षितिज जो दुश्मन है मेरा ... गुमराह कर रहा मुझे 

आकाश से मिल इतराता कहता ... क्यूँ आस लगाऎ  बैठा है 
क्यूँ अपनी आत्मा को नमकीन बनाए बहता है
इस नीले सागर  में ... आंसू बहाए रहता है  

वो कहता  रहा  छोड़ साहिल ... मंजिल से हो जा  रूबरू

ना समझ वो क्या जाने ... मंजिल तो मुसाफिर की अमानत है 
मै तो समंदर हूँ ... मेरा महबूब तो साहिल है 
गहराइयों को समेटे बस तलाश में रहूँ ...
मै तो समंदर हूँ ... बिना महबूब कैसे जियूं





                                                                         कश्यप द्विवेदी 

Sunday, January 27, 2013

ज़ज्बात



तू ज़िन्दगी है मेरी
सुकून तुझसे है मेरा

तू साथ है सदा मेरे
यकीन तुझपे है मेरा

नमी ये कैसी आँख मे ; बता तुझे मै प्यार दूँ
क्यूँ बिखरा है ये मन तेरा ; आ तुझे संवार दूँ

जो सवाल तेरे मन मे ; जला रहा है तुझे
तेरे हर सवाल का आ तुझे जवाब दूँ

ये सुर्ख मिजाज़ , बेरंग लिबाज़
क्यूँ ओढ़े  है ये तन तेरा

थामे हाथ चल संग मेरे
तेरी चूनर मै  रंग दूं

तस्वीर बन कर  इस तरह ; ना देख एक टक मुझे
आ ज़िन्दगी में आ मेरी ; किस्मत अपनी संवार लूँ

हथेलियॊ मे रख तुझे ; करूँगा प्यार बेपनाह
चाह में तेरी सारी  ज़िन्दगी गुज़ार दूँ


                                           
                             
                                                        कश्यप द्विवेदी 

Wednesday, January 9, 2013

"तेरे संग"



"तेरे संग"


ये वक़्त खुशनुमा हुआ .... जब तेरा मेरा संग  हुआ... 

जब साथ है तेरा संग   .... मैंने चाँद को छुआ .....

हर किनारे हर डगर .... बेगाने मुसाफिर हमराही बने...

ज़िन्दगी के कागज़ पर हम तुम एक सियाही बने....

हम जुबानी गाए गीत .... एक नयी कहानी लिखी .....

एक पल है ओझल तू अगर ... दुनिया मुझे वीरानी दिखी ...

हर लम्हा हर पल , तुझे देख  कर  जिया.......

दुनिया का हर मोह छुटा , जबसे तुझे दिल दिया ...... ♥ ♥ ♥







                                                            कश्यप द्विवेदी 

Wednesday, January 2, 2013

नव वर्ष...............



दिलो में ये जो हर्ष है
नव वर्ष का जो स्पर्श है

किसी ने पाई मंजिलें
किसी ने पाया दर्द है

जब वक़्त आगे बढ़ गया
तब तू रुक हुआ है क्यूँ
मिटा दे उस याद को
जो सताए दिन रात यूँ

ज़िन्दगी के खेले में
हर रोज़ एक मेला है
हर दुःख भुला कदम बढ़ा
नयी सुबह  की ये बेला है

हर दिन नया मुकाम पा
जो डट के तू खड़ा रहे
ऐसा ही  रूबाब ला

ये वक़्त भी टलेगा
जो तू चाहे वो मिलेगा

आ आगे बढ़ कर ; इस समय से प्यार कर
दोनों  बाहें खोल कर ; नव वर्ष का स्पर्श कर ....................




आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना .....           कश्यप द्विवेदी