Monday, July 26, 2021

इत्र

कहां हो ? नाराज़ हो ?
या.. यूं ही.. बेपरवाह..

छुपी हो, समेट कर
बेखुदी की बेतुकी वजह

तेरे इत्र की कपास, न जाने
कबसे मेरे पास है

जो रोक रही है वजह..
वही सबसे खास है..



कश्यप द्विवेदी

Tuesday, March 16, 2021

छलकती स्याही यादों की

महकती यादों के गुल
बाग से चुनता रहता हूं

इक याद तुम्हारी, ही वजह
जो ख्वाब पिरोता रहता हूं

मखमली सुबह हो या
सुहानी शाम का आलम

हर दिन सुन्हरी धूप में
ठंडी छांव किये बैठा हूं

सोच तुम्हें, सफेद पन्नों पर
लिखता हुं हर रोज कलम

देर हुई, गम नहीं, राह तुम्हारी एकटक
देख बार बार मैं, गीत लिखता रहता हूं

मसि छलक स्याही सा, बेचैन मैं उसाही
गर तुम नहीं फिर, इंतज़ार ही सही

कश्यप द्विवेदी

Saturday, March 6, 2021

डाफ़ाचूक (confused) मेवाडी भाषा में एक कोशिश

मालण पोए मोगरा, वी गजरा री ठाठ
कमल, हजारी ढुंढता, जो मैं किदी वात

पुछे मने अचान चुंक, कंणिने पेराओगा
पुजारी हो प्रेम रा, या मिंदर ही ले जाओगा

डबका खाता संपट लेता, हमजियो वंडी वात
देदे मोगरा संग गुलाब, पंखुड़ी रखजे हात

काठो मन, कर हिम्मत, जद किदो मै हिसाब
मुक, उतरी सुरत मारी, नी हो कोई जवाब

बोली मीठा कंठ ऊं पाछी, हुणों मने भी ले जाओगा
आगे जगदी चौक फिरा, पाछा ले आओगा

जो हां कहूं, के ना कहूं, भोलो मुं पुजारी
पडीको मेल थेला मे निकलियो, 
वा पगली गोता खारी


कश्यप द्विवेदी
मुसाफिर

Monday, February 1, 2021

"राबता"

मरम्मत जो की तुमने
मेरे दिल ऐ बेहाल की

तो, पूछता हुं अब, उस रब से
की ईबादत, किसकी करूँ

कहता हे वो भी कमाल, कुछ युं

'गर दिल में बसी हो, तो कर मेरी
जो दिल दे बैठा हो, तो उसका हो जा'

तेरा दिल अब तेरा कहां
जिसे इश्क है, मुसाफिर
उसका कोई रब कहां

कश्यप द्विवेदी
(मुसाफिर)

Thursday, January 7, 2021

कहां हो यारों


न जाने कहां, है वो दिन
जब मिलने के बहाने, होते न थे

किस्से कुछ तेरे, कुछ मेरे
सुनने के वादे, पुराने न थे

ढूंढ रहा हुं फिर तुम्हें,
कि वक्त तुम निकाल दो

ऐतबार ही रहा है बाकी, जालिम
तेरी रजामंदी का, इन्तजार करुंगा

मैं तो हूं मुसाफिर
लौट कर फिर यहीं मिलुंगा



कश्यप द्विवेदी

Monday, November 30, 2020

बेफिक्र इश्क

चला जाता हूं आज भी, उस गली जहां हम मिले,
फिर आज ले चलुं तुझे वहां, जहां दिये, अब भी जल रहे,

कहानियों का शौक तुझे, लिखता मै भी हुं कभी,
जो रुको, तो सुनाऊं, एक किस्सा, इश्क का अभी,

दबी सी मुस्कान तेरी, जो कहती 'हां' अभी तो हूं,
सुनाओ कुछ हसीन, जहां साथ तुम्हारा मैं भी दूं,

कश्यप द्विवेदी

Wednesday, April 8, 2020

मन का मुसाफिर


हुं मन का मुसाफिर, हर राहगीर मेरा हमसफर नहीं,
रास्तों से है इश्क मुझे, मंजिल, मकबरों से नहीं,

वजह तुझे पाने की, कि साथ ले चलुं तुझे
करुं फना वो शौक जो, अब तुझे पसंद नहीं

सब्र खुब है भरा, जो थाम लो अगर मुझे
सही है हर चोट वो, तभी तो टुटता नहीं,

रुका हुं कुछ देर और, जो मन करे गर तेरा
लुं साथ रंग और कुछ, वो चित्र जो बना नहीं

उस ओर तेरे यार और, ईधर हो यकीन तेरा
हुं मन का मुसाफिर, रकीब तु नहीं मेरा

कश्यप द्विवेदी