Tuesday, April 1, 2025

"भामा"

पूछा एक दोस्त ने, एक बार मुझसे,
की दिखती कैसी है?
जो करती है इतनी मोहब्बत तुझसे

क्या खास ऐसा उसमें, जो किसी और में नहीं ?
कोई और ना बना दुनिया में और कहीं ?

लिख लूं, फिर कहता हूं

बने तो सब मुझसे, वह बन न पाई,

सीधी, सरल कभी चपल, 
अपनी में रहती है,
होठों पर जो आ जाए
वह साफ कहती है

अभिमान न था उसमें 
मनोज्ञ, सुरूप, मंजूलता जिसमें

शांत हो जाए मन 
जो पड़ जाए उस पर नजर 
पवन हो जाए मन 
जो नजर टकरा जाए 

छू कर सिंचते देखा मैंने उसे,  बागों की नर्म कलियों को, 
जो घंटों चिड़ियाओं से भी गुफ्तगू कर लेती है 
क्या पता कैसे बंजर दिल में मेरे चैन से रह लेती है 

जिंदा रखती है मुझे, 
मेरी कहानी, कविताओं को 
मुझे समेटे, 
निर्मोह मोहब्बत की क्या बात बतलाऊं 
उसकी खास, उसके बिना कैसे दिखलाऊं 

क्या चंद्रमा शीतल? सितारे हसीन? 
फूलों में खुशबू? क्या खूबसूरत?
कहां रब? नहीं जानता 
जो बतलाया ऊपर पंक्तियों में बस उसे मानता..



कश्यप द्विवेदी 

Saturday, March 29, 2025

कमीज की मसक

शाम मे आजकल
अजब सी कसक है

इस्त्री हुई कमीज पर
पुरानी सी मसक है

क्या सोचती होगी देखकर
उस पार झरोंको से
ये आस लगाए रहता हूं

दिया था, तुमने पता,
आज भी गलत
मैं, संभाले बैठा हूं

शहर के सब, अब यार हैं
देखते हर दिन मुझे

क्या ढूंढता और किस तरह
जाने किस गली मकां तेरा

निकलो तुम भी, कभी
ढूंढने मुझे, इक बार

जो जगह बतलाई थी
मिलूंगा वहीं हर बार

लो फिर शाम हो गई
आज भी छटा मे
अजब सी कसक है

इस्त्री हुई कमीज पर
पुरानी सी मसक है...



कश्यप द्विवेदी

Wednesday, March 26, 2025

इक तस्वीर हमारी

"उस मुलाकात में, 
जब पुछा मैंने हाल ?

कहती, याद आती है
आज भी तुम्हारी"

फिर कुछ ना कहा सुन कर 

"गर कभी याद आ जाए 
तो जला देना, इक तस्वीर हमारी

तुम्हे सुकून आ जाए
तो कर देना, बखूब तारीफ हमारी

क्यों बेचैन होती हो
होनी थी, हो गई 

इक खास बात, मेरी तुम्हारी 
इस चकाचौंध में कही, खो गई

खत्म हो भी जाए तस्वीरें तो क्या
टटोल ना दिल, मिलेंगी कई सारी

किसे जलाओगी ? हाथ कुछ तो हो
छोडो बताओ, जहां हो, खुश तो हो?"

शायर की मात

कितना कुछ सुनना है, ये अब पता चला
जब खोया सा मैं, कल तुझसे मिला

कहने को, बातूनी तुम, हर किसी के लिए 
कहूं कुछ तो शांत, सुर्ख होंठो को सिये 

कहती है, कहते रहो.. अच्छा लिखते हो
कभी कभी ही तो अब, महफिल मे दिखते हो

कैसे बताऊं उसे, की कलम तो कब से खाली है
सूखी दवात से निकला हर शब्द जाली है

रुक कर पूछती, आज कुछ तो अलग बात है
इन बेरूखे शब्दों मे भी, शायर की मात है

मुस्कुरा कर, इस बार जो कहने को कुछ हुआ
तभी रोकते, नाजुक हाथों ने होंठो को छुआ 

ले बाहों मे जैसे छुपा ही लिया था जिसने
फिर इक बार, आशिक कर दिया था उसने

अब ना कागज, कोई कलम, ना स्याही
सीधा कहता हूं कुछ, सलंग मिज़ाही

महफिल मे इक तुम ही तो हो, जिसे है परवाह 
अब सुन कर थक गया ये मतलबी वाह वाह 

चल दूर कही, किसी शाम इत्मीनान से मिलते हैं
फलक से कुछ रंग चुरा, इकदुजे मे भरते हैं

जिस शाम की सुबह आए तो ठीक 
न आए तो, किसे शिक्वा, 
इश्क का लिहाफ लिए बैठे, पलकें बंद
अश्क छलके तो ठीक, मुस्कान मंद......

Thursday, March 20, 2025

बिसरी बात

गए, कल फिर वही बात हुई 
बिसरी, सहसा फिर साथ हुई 

अंजान सा मैं, चुप था मगर 
धीरे से ही सही, पर कुछ बात हुई 

पूछा उसने, कैसे हो 
अब तो चैन से सोते हो? 

ठहाके से ही सच 
बिन बात ही निकल गया 

पहले सपने आते थे 
दिन यादों में निकलते 
शाम मुलाक़ातों में

अब अपनी में मशगूल 
दिन भर अपनों में होता हूँ 
रात में गहरा सोता हूं 

सोच कर, ठिठकी, 
कहती तो क्या मैं पराई थी? 

मौन हो एक पल कहा 
जो थी तुम, उसकी मिसाल नहीं 
एक हसीन कहानी जिसे साथ लिखा 
वो कहानी पराई नहीं 

सुलगा के कश लेते 
देख ती एक टक मुझे 
कि कहीं मिल जाए नज़र 
तो बात, तो हो 
कश के बहाने से ही सही 
कुछ और पल हम तुम साथ तो हो 

कशमकश में आज भी
मौका ढूंढ लिया था उसने 
बेपरवाह एक रोज़ 
फ़रेब कर दिया था जिसने 

इश्क कहूँ, या कहु फ़िक्र 
जिसका कभी था हर बात में जिक्र 
चुप ही रहा, परवाह आज भी 
क्या हुआ क्यों हुआ, वो राज़ आज भी 

खामोशी का शोर लीजिए 
मन से ढेरों दुआ दिये 
निकल चला निशब्द ही 
धीरे से ही सही 
कल कुछ बात तो हुई



कश्यप द्विवेदी

Friday, October 11, 2024

शिकायत

कहता हैं, बदल गई हो तुम,
पहले सा, अब कुछ नहीं 

मैं हाज़िर, कह गई जवाब में 
तुम सा हसीं, कोई और नहीं 

चुप था शिकायती, क्षणिक
फिर बोला...

"कि, शिकवा ही तो की, 
जब की, तुझको तेरी,

तो, लिख लो हिसाब में कहीं,..

चुका देना, कभी, कर शिकायत,
गर मिल जाए, मेरी...."

कश्यप द्विवेदी

Monday, July 26, 2021

इत्र

कहां हो ? नाराज़ हो ?
या.. यूं ही.. बेपरवाह..

छुपी हो, समेट कर
बेखुदी की बेतुकी वजह

तेरे इत्र की कपास, न जाने
कबसे मेरे पास है

जो रोक रही है वजह..
वही सबसे खास है..



कश्यप द्विवेदी