Tuesday, March 16, 2021

छलकती स्याही यादों की

महकती यादों के गुल
बाग से चुनता रहता हूं

इक याद तुम्हारी, ही वजह
जो ख्वाब पिरोता रहता हूं

मखमली सुबह हो या
सुहानी शाम का आलम

हर दिन सुन्हरी धूप में
ठंडी छांव किये बैठा हूं

सोच तुम्हें, सफेद पन्नों पर
लिखता हुं हर रोज कलम

देर हुई, गम नहीं, राह तुम्हारी एकटक
देख बार बार मैं, गीत लिखता रहता हूं

मसि छलक स्याही सा, बेचैन मैं उसाही
गर तुम नहीं फिर, इंतज़ार ही सही

कश्यप द्विवेदी

Saturday, March 6, 2021

डाफ़ाचूक (confused) मेवाडी भाषा में एक कोशिश

मालण पोए मोगरा, वी गजरा री ठाठ
कमल, हजारी ढुंढता, जो मैं किदी वात

पुछे मने अचान चुंक, कंणिने पेराओगा
पुजारी हो प्रेम रा, या मिंदर ही ले जाओगा

डबका खाता संपट लेता, हमजियो वंडी वात
देदे मोगरा संग गुलाब, पंखुड़ी रखजे हात

काठो मन, कर हिम्मत, जद किदो मै हिसाब
मुक, उतरी सुरत मारी, नी हो कोई जवाब

बोली मीठा कंठ ऊं पाछी, हुणों मने भी ले जाओगा
आगे जगदी चौक फिरा, पाछा ले आओगा

जो हां कहूं, के ना कहूं, भोलो मुं पुजारी
पडीको मेल थेला मे निकलियो, 
वा पगली गोता खारी


कश्यप द्विवेदी
मुसाफिर